Faridabad Suicide Case: ASI की बेटी ने लगाई फांसी, स्कूल पर मानसिक उत्पीड़न का आरोप

Faridabad Suicide Case:  से एक बेहद दर्दनाक घटना सामने आई है जिसने पूरे क्षेत्र को झकझोर कर रख दिया। 14 वर्षीय सुरूचि चौधरी, जो एक ASI (Assistant Sub-Inspector) की बेटी थी, ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। यह घटना 26 जून को पुलिस लाइन एरिया की है, जहां सुरूचि अपने माता-पिता के साथ रहती थी।

सुरूचि दसवीं कक्षा की छात्रा थी और राष्ट्रीय स्तर की खो-खो खिलाड़ी भी थी। परिजनों के अनुसार, हाल ही में हुए यूनिट टेस्ट में तीन विषयों में असफल रहने पर स्कूल प्रिंसिपल और गणित की अध्यापिका ने उसे बार-बार डराया और धमकाया। उसे यह कहा गया कि अगर प्रदर्शन में सुधार नहीं हुआ, तो उसे एक साल पीछे कर दिया जाएगा।

इस मानसिक दबाव ने उसे ऐसा कदम उठाने पर मजबूर कर दिया।

आत्महत्या से पहले की मानसिक स्थिति और स्कूल की भूमिका

परिवार का दावा है कि सुरूचि पिछले कुछ दिनों से तनाव में थी। यूनिट टेस्ट में कम अंक आने के बाद स्कूल प्रशासन ने न सिर्फ उसे डांटा, बल्कि यह भी कह दिया कि उसे नौंवी कक्षा में वापस भेज दिया जाएगा। एक किशोरी के लिए यह किसी सदमे से कम नहीं था।

सुरूचि ने अपने माता-पिता से कहा था कि उसे “mentally torture” किया जा रहा है और वह इस दबाव को सहन नहीं कर पा रही। एक होनहार खिलाड़ी और समझदार छात्रा होने के बावजूद उसे बार-बार असफलता का डर दिखाया गया।

परिवार ने आरोप लगाया कि स्कूल में खेल प्रतियोगिता में भी उसे Under-19 की बजाय Under-14 कैटेगरी में भेजा गया, जबकि उसकी प्रतिभा के अनुसार वह सीनियर कैटेगरी की खिलाड़ी थी। यह निर्णय भी उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने वाला था।

Source: NLTV

घटना की जानकारी और पुलिस जांच

घटना के दिन सुबह जब सुरूचि अपने कमरे से बाहर नहीं आई, तो परिवार ने दरवाजा तोड़ा। अंदर का दृश्य देखकर सभी सदमे में आ गए — सुरूचि पंखे से लटकी हुई मिली। आनन-फानन में उसे अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया।

मामले में पुलिस ने IPC की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत केस दर्ज किया है। आरोपी स्कूल प्रिंसिपल और गणित अध्यापिका के खिलाफ जांच जारी है। परिजनों ने लिखित शिकायत दी है और बच्ची के मोबाइल व अन्य दस्तावेज जांच में शामिल किए गए हैं।

खेल, पढ़ाई और दबाव – किशोरों की दबी आवाज

Faridabad Suicide Case सिर्फ एक व्यक्तिगत नुकसान नहीं है, यह एक सामाजिक चेतावनी है। खेलों में अव्वल और पढ़ाई में मेहनती छात्रा जब खुद को खत्म करने पर मजबूर होती है, तो यह दर्शाता है कि हम बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से नहीं ले रहे।

हर साल हजारों छात्र परीक्षा और रिजल्ट के दबाव में टूट जाते हैं। स्कूलों की भूमिका सिर्फ अकादमिक रिजल्ट तक सीमित नहीं होनी चाहिए। बच्चों के भीतर आत्मविश्वास और सहनशक्ति बढ़ाने के लिए सहानुभूतिपूर्ण वातावरण जरूरी है।

समाज और शिक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल

Faridabad Suicide Case ने शिक्षा व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न खड़े किए हैं। स्कूलों में पढ़ाई के अलावा मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता क्यों नहीं दी जाती? किसी छात्र को फेल होना जीवन का अंत नहीं होना चाहिए, बल्कि उस पर सहानुभूति से बात करनी चाहिए।

अगर सुरूचि को काउंसलिंग दी जाती, उसकी बात सुनी जाती, तो शायद वह आज जीवित होती। पढ़ाई और खेल के संतुलन में आज भी कई छात्र पिस रहे हैं।

क्या कहती है रिसर्च?

भारतीय किशोरों में आत्महत्या की दर दुनियाभर में सबसे अधिक है। WHO की रिपोर्ट बताती है कि 15–19 वर्ष की उम्र के युवाओं में आत्महत्या दूसरी सबसे बड़ी मृत्यु का कारण है। मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं स्कूलों में बहुत ही सीमित हैं, जो चिंता का विषय है।

सुरूचि जैसी होनहार छात्राओं की मौत सिर्फ आंकड़ा नहीं, एक पुकार है — बदलाव की।

परिवार का दर्द और समाज की ज़िम्मेदारी

सुरूचि की मां खुद हरियाणा पुलिस में ASI हैं। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि उनकी बेटी बहुत होशियार थी और लगातार मेहनत कर रही थी। उन्होंने बताया कि बच्ची को प्रिंसिपल से डर लगता था और वह खुद को “mental harassment” का शिकार मानती थी।

परिवार की मांग है कि स्कूल प्रशासन को कड़ी सज़ा दी जाए और ऐसी घटनाएं भविष्य में न हों, इसके लिए कानून में बदलाव किया जाए।

समाधान की दिशा में क्या करें?

  • स्कूलों में नियमित काउंसलिंग होनी चाहिए।
  • शिक्षकों को मानसिक स्वास्थ्य प्रशिक्षण देना अनिवार्य किया जाए।
  • अभिभावकों को बच्चों के मानसिक संकेतों को समझने के लिए जागरूक किया जाए।
  • सरकार को स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य नीति लागू करनी चाहिए।

निष्कर्ष

Faridabad Suicide Case हमें एक बार फिर सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम बच्चों के मन को समझ पा रहे हैं? एक 14 वर्षीय बच्ची जिसने राज्य और स्कूल का नाम रोशन किया, वह खुद को असफल मानने लगी — क्योंकि हमने उसे समय रहते नहीं सुना।

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